Din guzar gaya

दिन गुज़र गया ऐतबार में
रात कट गयी इंतज़ार में

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में

उनकी इक नज़र काम कर गयी
होश अब कहाँ होशियार में

मेरे कब्ज़े में आईना तो है
मैं हूँ आपके इख्तेयार में

आँख तो उठी फूल की तरफ
दिल उलझ गया हुस्न-हार में

तुमसे क्या कहें, कितने ग़म सहे
हमने बेवफ़ा तेरे प्यार में

फ़िक्र-ए-आशियां हर खिज़ाम की
आशियां जला हर बहार में

किस तरह ये ग़म भूल जाएं हम
वो जुदा हुआ इश्तिहार में

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