Hushn par jab kabhi sabab aaya

हुस्न पर जब कभी शबाब आया
सारी दुनिया में इंक़लाब आया

मेरा ख़त ही जो तूने लौटाया
लोग समझे तेरा जवाब आया

उम्र तिफली में जब ये आलम है
मार डालोगे जब शबाब आया

तेरी महफ़िल में सुकून मिलता है
इसलिए मैं भी बार बार आया

तू गुज़ारेगी ज़िंदगी कैसे
सोच कर फिर से मैं चला आया

ग़म की निस्बत न पूछिए हमसे
अपने हिस्से में बेहिसाब आया

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