Tu ambar ki aankh ka tara

तू अम्बर की आँख का तारा, मेरे छोटे हाथ
सजन मैं भूल गयी ये बात....

तुझको सारे मन से चाहा, चाहा  सारे तन से
अपने पूरेपन से चाहा और अधूरेपन से
पानी की एक बूँद कहाँ, और कहाँ भरी बरसात
सजन मैं भूल गयी ये बात....

जनम जनम माँगूंगी तुझको, तुम मुझको न ठुकराना
मैं माटी में मिल जाऊँगी, तुम माटी हो जाना
लहर के आगे क्या इक छोटे तिनके की औक़ात
सजन मैं भूल गयी ये बात....

तेरी ओर ही देखा मैंने, अपनी ओर न देखा
जब जब बढ़ना चाहा, पाँव से लिपटी लक्ष्मण रेखा
मैं अपने भी साथ नहीं थी, दुनिया तेरे साथ
सजन मैं भूल गयी ये बात..

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