तुम्हीं गुज़र गए दामन बचाके........
इसी चमन में ही हमारा भी इक ज़माना था
यहीं कहीं कोई सादा सा आशियाना था
नसीब अब तो नहीं शाख़ भी नशेमन की
लदा हुआ कभी फूलों से आशियाना था
तेरी क़सम अरे ओ जल्द रूठने वाले
गुरूर-ए-इश्क़ ना था नाज़-ए-आशिक़ाना था
(नाज़-ए-आशिक़ाना = प्रेम का गर्व)
तुम्हीं गुज़र गए दामन बचाके वरना यहाँ
वही शबाब, वही दिल, वही ज़माना था ... !!!
»»» जिगर मुरादाबादी !!!
इसी चमन में ही हमारा भी इक ज़माना था
यहीं कहीं कोई सादा सा आशियाना था
नसीब अब तो नहीं शाख़ भी नशेमन की
लदा हुआ कभी फूलों से आशियाना था
तेरी क़सम अरे ओ जल्द रूठने वाले
गुरूर-ए-इश्क़ ना था नाज़-ए-आशिक़ाना था
(नाज़-ए-आशिक़ाना = प्रेम का गर्व)
तुम्हीं गुज़र गए दामन बचाके वरना यहाँ
वही शबाब, वही दिल, वही ज़माना था ... !!!
»»» जिगर मुरादाबादी !!!
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