Ab mohabbat, na wafa aur

अब मोहब्बत न वफ़ा और न याराने हैं
पहले वक्तों के शायद कोई अफ़साने हैं।

ज़ीस्त वो मैकदा-ऐ-ग़म है जहाँ अहल-ए-वफ़ा
गर्दिश-ए-वक़्त से टूटे हुए पैमाने हैं।

ग़म मोहब्बत के बढ़े आते हैं मेरी जानिब
कोई रोके न इन्हें, ये मेरे दीवाने हैं।

दिल मे रौनक है ना हंगामा यारों
अपनी नज़रों में तो अब शहर भी वीराने हैं।

(ज़ीस्त = जीवन, ज़िंदगी), (अहल-ए-वफ़ा = वफ़ा करने वाले)

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