कैसे सुकून पाऊँ तुझे देखने के बाद
अब क्या ग़ज़ल सुनाऊँ तुझे देखने के बाद,
आवाज दे रही है मेरी जिंदगी मुझे
जाऊं के या न जाऊं तुझे देखने के बाद,
काबे का एहतराम भी मेरी नज़र में है
सर किस तरफ झुकाऊँ तुझे देखने के बाद,
तेरी निगाह-ए-मस्त ने मखरूर कर दिया
क्या मैकदे को जाऊ तुझे देखने के बाद,
नज़रो में ताब-ए-दीद ही बाकी नहीं रही
किस से नज़र मिलाऊँ तुझे देखने के बाद,
मंजिल की ज़ुस्तज़ु में उठे थे मेरे क़दम
कैसे कदम बढ़ाऊ तुझे देखने के बाद।।
अब क्या ग़ज़ल सुनाऊँ तुझे देखने के बाद,
आवाज दे रही है मेरी जिंदगी मुझे
जाऊं के या न जाऊं तुझे देखने के बाद,
काबे का एहतराम भी मेरी नज़र में है
सर किस तरफ झुकाऊँ तुझे देखने के बाद,
तेरी निगाह-ए-मस्त ने मखरूर कर दिया
क्या मैकदे को जाऊ तुझे देखने के बाद,
नज़रो में ताब-ए-दीद ही बाकी नहीं रही
किस से नज़र मिलाऊँ तुझे देखने के बाद,
मंजिल की ज़ुस्तज़ु में उठे थे मेरे क़दम
कैसे कदम बढ़ाऊ तुझे देखने के बाद।।
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