Mujhe khabar thi vo mera paraya tha

मुझे खबर थी वो मेरा पराया था
पर धड़कनों ने उसी को खुदा बनाया था

मैं ख़्वाब-ख़्वाब जिसे ढूढ़ता फिरा बरसों
वो अश्क़-अश्क़ मेरी आँख में समाया था

तेरा कसूर नहीं जान मेरी तन्हाई
ये रोग मैंने ही खुद जान को लगाया था

तमाम शहर में एक वो हैं अजनबी मुझसे
के जिसने गीत मेरा शहर को सुनाया था

उसकी यादों का दिया बुझता नहीं
उसके बिना दीपक भी जलता नहीं

पता था छोड़ देगा वो एक दिन वो अँधेरे में
फिर भी उसके लिये दिल से दीपक जलाया था

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