Yun to jate huve maine use roka bhi nahi

यूँ तो जाते हुए मैंने उसे रोका भी नही
प्यार उस से न रहा हो मुझे, ऐसा भी नही

मुझको मंजिल की कोई फ़िक्र नही है या रब
पर भटकता ही रहूँ जिस पे, वो रस्ता भी नही

मुन्तज़िर मैं भी किसी शाम नहीं था उसका
और वादे पे कभी शख़्स वो आया भी नही

(मुन्तज़िर = प्रतीक्षारत)

जिस की आहट पे निकल पड़ता था कल सीने से
देख कर आज उसे दिल मेरा धड़का भी नहीं

-फ़रहत शहज़ाद

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