Aankh ko jaam samajh / आँख को ज़ाम समझ बैठा

आँख को ज़ाम समझ बैठा था अनजाने में
साक़िया होश कहाँ था तेरे दीवाने में

जाने किस बात की उनको है शिकायत मुझसे
नाम तक जिनका नहीं है मेरे अफ़साने में

दिल के दुकड़ों से तेरी याद की खुशबू ना गई
बू-ए-मय बाकी है टूटे हुए पैमाने में

(बू-ए-मय = शराब की महक )

दिल-ए-बर्बाद में उम्मीद का आलम क्या है
टिमटिमाती हुई इक शम्मा है वीराने में

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