Dil jo na kah saka / दिल जो न कह सका

दिल जो न कह सका
वही राज़-ए-दिल कहने की रात आई
दिल जो न कह सका

नग्मा सा कोई जाग उठा बदन में
झनकार की सी थरथरी है तन में
मुबारक तुम्हें किसी की
लरजती सी बाहों में रहने की रात आई
दिल जो न कह सका...

तौबा ये किस ने अंजुमन सजा के
टुकड़े किये हैं गुंच-ए-वफ़ा के
उछालो गुलों के टुकड़े
के रंगीं फ़िज़ाओं में रहने की रात आई
दिल जो न कह सका...

चलिये मुबारक ये जश्न दोस्ती का
दामन तो थामा आपने किसी का
हमें तो खुशी यही है
तुम्हें भी किसी को अपना कहने की रात आई
दिल जो न कह सका...

सागर उठाओ दिल का किस को ग़म है
आज दिल की क़ीमत जाम से भी कम है
पियो चाहे खून-ए-दिल हो
के पीते पिलाते ही रहने की रात आई
दिल जो न कह सका...
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