ऐसा लगता है जिन्दगी तुम हो
अजनबी कैसे अजनबी तुम हो
अब कोई आरज़ू नहीं बाक़ी
जुस्तजू मेरी आख़री तुम हो
[(आरज़ू = इच्छा), (जुस्तजू = तलाश, खोज)]
मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की चांदनी तुम हो
दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें
किस ज़माने के आदमी तुम हो
-बशीर बद्र
अजनबी कैसे अजनबी तुम हो
अब कोई आरज़ू नहीं बाक़ी
जुस्तजू मेरी आख़री तुम हो
[(आरज़ू = इच्छा), (जुस्तजू = तलाश, खोज)]
मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की चांदनी तुम हो
दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें
किस ज़माने के आदमी तुम हो
-बशीर बद्र
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